मास्टर निदेश – प्रायोजकों के लिए उचित और उपयुक्त मानदंड – आस्ति पुनर्निर्माण कंपनियां (रिज़र्व बैंक) निदेश 2018
भारतीय रिज़र्व बैंक (बैंक), वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण और पुनर्गठन तथा प्रतिभूति हित का प्रवर्तन अधिनियमन 2002 (अधिनियम) की धारा (3) की उप धारा 3 के खंड (एफ) और इस संबंध में विनियमित करने हेतु बैंक को सक्षम बनाने संबंधित सभी शक्तियों का प्रयोग करते हुए इस अधिनियम के तहत पंजीकृत आस्ति पुनर्निर्माण कंपनियों (एआरसी) के प्रायोजकों के लिए उचित और उपयुक्त मानदंड पर निदेश देता है।
- संक्षिप्त शीर्षक और निदेशों का प्रारंभ
- ये निदेश प्रायोजकों के लिए उचित और उपयुक्त मानदंड- आस्ति पुनर्निर्माण कंपनियां (रिज़र्व बैंक) निदेश 2018 के नाम से जाने जाएंगे।
- ये निदेश तत्काल प्रभाव से प्रभावी होंगे।
- प्रयोजनीयता
इन निदेशों के प्रावधान एआरसी के वर्तमान और प्रस्तावित प्रायोजकों पर लागू होंगे।
- परिभाषाएं
इन निदेशों में जब तक अन्यथा अपेक्षित न हो, उल्लिखित शब्दों का वही अर्थ होगा जो नीचे दिया गया है-
(i) “अधिनियम” का अभिप्राय है वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण और पुनर्गठन तथा प्रतिभूति हित का प्रवर्तन अधिनियमन 2002 और इसमें यथासंशोधन।
(ii) “आवेदक” का तात्पर्य अधिनियम की धारा 3 के तहत आवेदन करने वाला व्यक्ति।
(iii) “प्रायोजक” का वही अभिप्राय है, जो अधिनियम की धारा 2(1)(जेडएच) में दिया गया है और इसका अर्थ है कोई व्यक्ति जो आस्ति पुनर्निर्माण कंपनी में कम से कम दस प्रतिशत की चुकता इक्विटी पूंजी होल्डिंग/धारिता रखता हो।
- एआरसी के प्रायोजकों के लिए पात्रता मानदंड
एआरसी को प्रायोजित करने की पात्रता रखने के लिए प्रायोजकों को ‘उचित और उपयुक्त’ होना होगा।
- एआरसी के प्रायोजकों के ‘उचित और उपयुक्त’ स्थिति के निर्धारक
कोई प्रायोजक उचित और उपयुक्त है अथवा नहीं यह निर्धारित करने के लिए बैंक उपयुक्ततानुसार सभी प्रासंगिक कारकों को शामिल करेगा, किन्तु यह निम्नलिखित तक ही सीमित नहीं है,
- प्रायोजक की सत्यनिष्ठा, प्रतिष्ठा, ट्रैक रिकॉर्ड और लागू नियमों और विनियमों के संबंध में अनुपालन;
- प्रायोजक एवं उनसे जुड़े व्यक्तियों और अन्य संस्थाओं के संबंध में कारोबार संचालित करने का पिछला ट्रैक रिकॉर्ड और प्रतिष्ठा ऐसा हो कि वह उत्तम कारपोरेट गवर्नेंस, सत्यनिष्ठा के अनुरूप हो;
- प्रायोजक का कारोबार रिकार्ड और अनुभव;
- अधिग्रहण के लिए निधियों का स्रोत और स्थिरता तथा वित्तीय बाजारों तक पहुँच की क्षमता;
- शेयरधारिता करार और एआरसी के नियंत्रण तथा प्रबंधन में उनका प्रभाव।
- प्रायोजकों द्वारा प्रदत सूचनाओं के साथ–साथ प्रासंगिक समर्थनकारी दस्तावेज
(i) प्राकृतिक व्यक्ति द्वारा सूचना
इन निदेशों की अनुसूची में विनिर्दिष्ट फॉर्म I (भाग ए, बी और सी) के अनुसार स्व-घोषणा।
(ii) विधिक व्यक्ति द्वारा सूचना
इन निदेशों की अनुसूची में विनिर्दिष्ट फॉर्म I (भाग ए, बी, सी और डी) के अनुसार स्व-घोषणा।
(iii) एआरसी को फॉर्म I (भाग ई) के अनुसार अतिरिक्त सूचनाएं देनी होगी।
- मौजूदा प्रायोजकों के लिए समुचित सावधानी बरतने के लिए निरंतर जांच व्यवस्था
(i) यह सुनिश्चित करने के लिए कि सभी प्रायोजक ‘उचित और उपयुक्त’ हैं, प्रत्येक एआरसी
(ए) वित्तीय वर्ष की समाप्ति के एक माह के भीतर इन निदेशों की अनुसूची में विनिर्दिष्ट फॉर्म I में अपने सभी प्रायोजकों से घोषणा फॉर्म प्राप्त करें;
(बी) प्रत्येक वर्ष के मई माह के अंत तक प्रायोजक की स्थिति में परिवर्तन के संबंध में फॉर्म III में प्रमाणपत्र रिज़र्व बैंक को भेजें।
(ii) यदि एआरसी के पास प्रायोजकों से संबंधित ऐसी कोई जानकारी आती है, जिसके कारण ऐसे व्यक्ति इन शेयरों को धारण करने के लिए उचित और उपयुक्त नहीं रह जाते है; तो वे इसकी जांच करेगी तथा इसके संबंध में बैंक को रिपोर्ट करेगी।
- पूर्वानुमोदन आवश्यकता का अनुपालन
(i) 24 फरवरी 2015 को जारी परिपत्र बैंविवि(नीप्र)कंपरि.सं.01/एससीआरसी/26.03.001/2014-2015 तथा इसमें समय-समय पर हुए संशोधनों में दर्शाये अनुसार एआरसी की शेयरधारिता में परिवर्तन हेतु बैंक से पूर्वानुमोदन लेने के लिए एआरसी इन निदेशों की अनुसूची में विनिर्दिष्ट फॉर्म II के साथ आवेदन करेगी।
(ii) कोई प्रायोजक उचित और उपयुक्त है या नहीं इसका मूल्यांकन करने के लिए बैंक, अन्य बातों के साथ-साथ, आवश्यकतानुसार अन्य देशी तथा विदेशी विनियामकों और प्रवर्तन एवं जांच एजेंसियों से प्रायोजक के संबंध में प्रतिपुष्टि प्राप्त करेगा।
भवदीय