धूप निकली थी कल अब गलन हो गई, धूप भी आजकल बदचलन हो गई -श्यामल मजूमदार

शब्दाक्षर द्वारा वासंतिक कवि सम्मेलन आयोजित

लखनऊ। शब्दाक्षर राष्ट्रीय साहित्यिक संस्था, उ0प्र0 द्वारा सहारा स्टेट, जानकीपुरम स्थित संस्कार मंडप में ‘‘वासंतिक कवि सम्मेलन’’ का आयोजन किया गया। शब्दाक्षर के राष्ट्रीय अध्यक्ष, रवि प्रताप सिंह (कोलकता) के मार्गदर्शन में प्रदेश अध्यक्ष व्यंगकार श्यामल मजूमदार के मंच संचालन में 24 कवियों के अप्रतिम काव्य पाठ से इस सारस्वत यज्ञ को दिव्य बना दिया।

प्रारम्भ में विशिष्ट अतिथि कृष्णानंद मैठाणी, पूर्व मंत्री, (श्रीनगर, उत्तराखंड), प्रो0 उमा मैठाणी, केंद्रीय विश्वविद्यालय, (श्रीनगर), सत्येंद्र रघुवंशी, राष्ट्रीय कवि, (पूर्व आईएएस), नीरज नैथानी, अंतरराष्ट्रीय कवि (श्रीनगर), अखिलेश निगम, राष्ट्रीय कवि (डीआईजी), सत्येंद्र सिंह सत्य, कवि (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष), राजेश जैन (साहित्यकार, श्रीनगर) ने दीप प्रज्जवलित कर कवि सम्मेलन का शुभारम्भ किया।

इस अवसर पर अतिथियों के काव्य पाठ के साथ ही शब्दाक्षर उ0प्र0 की साहित्य मंत्री सुमन सौरभ, संजय त्रिपाठी, लखनऊ जिला अध्यक्ष संतोष हिंदवी, कवि गोबर गणेश, मनमोहन बाराकोटी, रवीश पांडे, निशा नवल, पांडे आफत, माधुरी मिश्र, शरद पांडे, रजनी श्रीवास्तव, स्वाति मिश्र, भास्कर, उदय पांडे, श्रवण कुमार, डा0 उनियाल, गिरीश चंद्र बहुगुणा, राकेश कुमार पांडेय आदि कवियों ने सारगर्भित काव्य पाठ कर वासंतिक कवि सम्मेलन को सार्थक कर दिया।

काव्य धारा में ‘‘कामना की लाज का घूँघट उठाने आ गया, बावरा ऋतुराज सबका मन लुभाने आ गया’’ – डॉ. सुमन सुरभि एवं ‘‘मुल्क की खातिर मिटे कुछ नौजवाँ ऐसे भी थेष् -रवि प्रताप सिंह, कोलकाता की रचना को लोगों ने बहुत पंसद किया। श्यामल मजूमदार की प्रस्तुति ‘‘धूप निकली थी कल, अब गलन हो गई, धूप भी आजकल बदचलन हो गई। मेघ वर्षा करें झील पर आजकल, प्यासी धरती से उनको जलन हो गई’’ ने दर्शकों की तालियॉं बटोरी।

श्रीनगर गढ़वाल के नीरज नैथानी ने ‘’कभी धरा में धाक जमी थी, नालंदा के शाला की तक्षशिला भी कह रहा था गौरव गाथा भारत की’’ एवं ‘वसन्त’ पर संतोष तिवारी “हिन्दवी“ की रचना ‘‘पीत-चूनर से सजते खेत, तितलियां करे नृत्य नादान। फसल का देख नवल-उन्मेष, हर्ष से चैड़ा हुआ किसानष् को लोगों ने बहुत सराहा।

अमित वर्मा ‘रहबर’ के काव्य ‘‘सियाह शब से सवेरा निकालना है मुझे, दिया हवाओं से जलता निकालना है मुझेष् तथा सत्येन्द्र सिंह ’सत्य’ की श्रृंगारिक रचना ‘‘भीगे केश झटक कर जब तुम बिखराती शीतल जल, सिंचित हो जाता है तब मेरे मन का मरुस्थल’ ने श्रोताओं को रस विभोर कर दिया। कार्यक्रम की सफल व्यवस्था गिरीश चन्द्र बहुगुणा, उत्तरांचली ने किया।

मीडिया प्रभारी अनिल तिवारी ने बताया शब्दाक्षर देश के 25 प्रदेशों में स्थापित है, इसके द्वारा चेन्नई, मुंबई, कोलकाता, तेलंगाना, उत्तरांचल, दिल्ली आदि स्थानों में कवि सम्मेलन आयोजित किये गये। उ0प्र0 में पूरे वर्ष में शब्दाक्षर द्वारा चार कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे। अंत में संतोष हिंदवी, जिला अध्यक्ष ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया।